Soil of Madhya Pradesh (General Knowledge)
मृदा – मध्य प्रदेश में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है और अन्य मिट्टियों में काली मिट्टी लाल मिट्टी और लैटराइट मिट्टी पायी जाती है|
मध्य प्रदेश में मिट्टियाँ – मध्यप्रदेश में मुख्यतः पांच प्रकार की मिट्टियां क्रमशः काली मृदा, जलोढ़ मृदा, लाल पीली मृदा, लेटराइट मृदा एवं मिश्रित लाल मृदा पाई जाती है| मध्य प्रदेश के उत्तर -पश्चिमी भाग में जलोढ़ मृदा, पश्चिमी भाग में काली मृदा, उत्तर -पूर्वी व दक्षिण भाग में मिश्रित लाल व काली मृदा दक्षिण -पूर्वी भाग में लाल- पीली मृदा का विस्तार पाया जाता है|
मध्यप्रदेश में काली मिट्टी
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक काली मिट्टी का विस्तार पाया जाता है जो राज्य के लगभग 43.44% भू -भाग पर पाई जाती है| काली मिट्टी में मुख्य रूप से सोयाबीन, मूंगफली, कपास आदि फसलों की खेती की जाती है|
काली मिट्टी की उपलब्धता मालवा के पठार दक्षिणी भाग में स्थित नर्मदा घाटी के अंतर्गत होशंगाबाद, रायसेन, हरदा, नरसिंहपुर, सागर, दमोह तथा दक्षिण- पूर्वी व दक्षिणी -पश्चिमी भाग में सतपुड़ा घाटी क्षेत्र के अंतर्गत खंडवा, खरगोन, छिंदवाड़ा, सिवनी व बैतूल जिले में पाया जाता है|
मध्यप्रदेश में जलोढ़ मिट्टी
मध्य प्रदेश की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी जलोढ़ मिट्टी है| यह मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में बुंदेलखंड नीस तथा चंबल एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा निक्षेपित पदार्थ से निर्मित जलोढ़ मिट्टी का विस्तार मुख्यतः भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी जिले के लगभग 3.35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उपलब्ध है, जो संपूर्ण राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.57% है|
जलोढ़ मिट्टी बहते हुए जल द्वारा बहा कर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया अवसाद होता है| यह मृदा भुरभुरी होती है अर्थात इसके कारण आपस में सख्ती से बंधकर कोई ‘ठोस’ शैल नहीं बनाते|
मध्य प्रदेश के उत्तर व उत्तर -पश्चिमी भाग में गंगा की सीमांत घाटी (गंगा यमुना मैदानी क्षेत्र )अर्थात चंबल घाटी व उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में चंबल नदी द्वारा बहा कर लाए गए अवसादों से कछारों का निर्माण होता है इसलिए जलोढ़ मृदा को कछारी विदा कहा जाता है| इसके अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन की दृष्टि से सबसे उपयोगी व महत्वपूर्ण मिट्टी होने के कारण जलोढ़ मिट्टी को खाद्यान्न मिट्टी कहा जाता है तथा इसे दोमट मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है|
लाल पीली मिट्टी
मध्य प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित बालाघाट जिले के अंतर्गत लाल -पीली मिट्टी का विस्तार पाया जाता है, जो धान की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मृदा है | बालाघाट जिले के अतिरिक्त डिंडोरी, मंडला आदि जिलों में भी लाल -पीली मृदा पाई जाती है|
लैटेराइट मिट्टी
मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा बालाघाट व बैतूल जिले में लैटेराइट मिट्टी का अधिकांश भाग विस्तृत है| लेटराइट मृदा को लाल बलुई मृदा तथा स्थानीय स्तर पर भाटा भी कहा जाता है| लैटेराइट मिट्टी का विस्तार अधिकांशत: उन क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां वर्षा अधिक मात्रा में होती है मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में भैंसदेही पठार के अंतर्गत लैटेराइट मृदा का विस्तार पाया जाता है, जिसमें कॉफी (कहवा ) की खेती की जाती है|
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही तहसील के अंतर्गत कुकरु ग्राम में लगभग 110 हेक्टेयर क्षेत्र में कॉफी का उत्पादन होता है, इस क्षेत्र में कॉफी उत्पादन प्रारंभ करने का श्रेय ब्रिटिश नागरिक सैंट विल्फोर्ड को प्रदान किया जाता है |
मिश्रित मृदा
मध्य प्रदेश के बघेलखंड व बुंदेलखंड क्षेत्र में लाल- पीली मिट्टी तथा काली मिट्टी के मिश्रित रूप का विस्तार पाया जाता है| मिश्रित मृदा का विस्तार प्रमुख रूप से रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, शिवपुरी, गुना आदि जिलों में पाया जाता है इस जिसमें प्रमुख रुप से ज्वार, बाजरा व अन्य मोटे अनाजों की खेती की जाती है|
मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन
मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में मध्य भारत पठार के अंतर्गत चंबल तथा उसकी सहायक नदियां अपने दोनों किनारों पर अत्यधिक गहरे गड्ढों (उत्खात भूमि )का निर्माण करती है, जो इस क्षेत्र में गहरी नालियां अवनालिका अपरदन का विकराल रूप धारण कर नाली कटाव के रूप में जलोढ़ मृदा क अपरदन करता है | मृदा अपरदन अर्थात मिट्टी केअवक्षरण को रेंगती हुई मृत्यु भी कहा जाता है|
मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित मुरैना जिला सर्वाधिक अपरदन की समस्या से ग्रस्त है| मुरैना जिले के अतिरिक्त भिंड, श्योपुर व ग्वालियर जिलों में चंबल, सीप, बेसली, कूनो, पार्वती, सांक एवं सिंध नदी द्वारा भी बीहड़ क्षेत्र का निर्माण हुआ है|
मृदा अपरदन रोकने हेतु प्रयास
वर्ष 2018 में भारत सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में चंबल क्षेत्र को “ग्रीन एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट ” में सम्मिलित कर बीहड़ समस्या के निदान व उन्मूलन के प्रयास किए जा रहे हैं|मध्य प्रदेश की उत्पाद भूमि के अवनालिका अपरदन का परिणाम है कि मध्य प्रदेश की चंबल नदी द्वारा बनाए गए बड़े-बड़े खड्डे एवं चंबल की सहायक नदियों के किनारों पर एक चौड़ी पेटी अत्यधिक गहरे गड्ढे में परिवर्तित हो गई है। लगभग 6.5 लाख एकड़ बहुमूल्य कृषि भूमि का इन खड्डों में परिवर्तित हो जाना ही अवनालिका अपरदन का विकराल रूप है | मध्य प्रदेश के भिंड एवं मुरैना जिले अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक रूप से प्रभावित है|