मध्य प्रदेश पंचायत राज एक्ट- 1993

मध्य प्रदेश पंचायत राज एक्ट- 1993 (सामान्य ज्ञान)

मध्य प्रदेश पंचायत राज एक्ट- 1993 (सामान्य ज्ञान)

म.प्र. पंचायती राज एक्ट 1993

73वें संविधान संशोधन 1992 को 22 दिसंबर, 1992 को लोकसभा तथा 23 दिसंबर, 1992 को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया ।

20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की अनुमति के बाद 24 अप्रैल, 1993 को लागू किया । 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।

इसमें भाग-9, 11वीं अनुसूची (29 विषय) तथा 16 अनुच्छेद 243 से 243 (0) तक जोड़े गए।

म.प्र. इसका अनुपालन करने वाला पहला राज्य है।
29 दिसंबर, 1993 को राज्य विधानसभा में म.प्र. पंचायती राज अधि.विधेयक प्रस्तुत किया जिसे 30 दिसंबर, 1993 को पारित किया गया ।

24 जनवरी, 1994 को राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा 25 जनवरी,1994 को प्रथम बार प्रकाशित और प्रवृत्त हुआ।

म.प्र. में पंचायतीराज संस्थाओं का संगठन एवं कार्य निम्न प्रकार हैं-

ग्राम सभा

राज्यपाल किसी ग्राम अथवा ग्रामों के समूह को एक ग्राम के रूप में स्पष्ट करते हैं।

इस ग्राम या ग्राम समूह के निवासी व वयस्क मतदाताओं के समूह को ग्राम सभा के रूप में मान्यता दी जाती है।

ग्राम सभा में तीन महीने में एक मीटिंग अनिवार्य है।

ग्रामपंचायतों के सभी कार्यों की जाँच करती है।

ग्राम सभा अपने समस्त कार्य को समितियों के माध्मम से संचालित करती है।

इस प्रकार ग्राम सभा विधायिका व ग्राम पंचायत कार्यपालिका के रूप में कार्य करती है।

आरक्षण

म.प्र. पंचायती व्यवस्था के तीनों स्तरों के लिए यह प्रावधान है कि अनुसूचित जाति/जनजाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में पद आरिक्षत है।

यदि अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण कुल सीटों के 50% से कम है, तो 25% स्थान पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रहेंगे।

तीनों स्तर में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत स्थान आरक्षित रखे गये है।

पंचायतों का गठन- म.प्र. में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्वीकार की गई है।

ग्राम के लिए ग्राम पंचायत, विकासखण्ड स्तर पर जनपद पंचायत एवं जिले के लिए पंचायत का गठन किया गया है।

ग्राम पंचायत

संगठन-ग्राम पंचायत में वार्डों की संख्या न्यूनतम 10 और अधिकतम 20 होती है।

1000 तक की आबादी वाली पंचायतों में कम-से-कम 10 वार्ड होते हैं।

सभी वार्डों में जनसंख्या समान होती है।

ग्राम पंचायत का प्रमुख सरपंच होता है और उसका निर्वाचन प्रत्यक्ष होता है।

प्रत्येक वार्ड का निर्वाचक प्रतिनिधि पंच कहलाता है।

सरपंच के सहायक रूप में उप सरपंच होता है, जो पंचों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।

पंच बनने के लिए ग्राम में कम-से-कम 6 माह निवास करना जरूरी है।

वह 21 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका तथा पागल दिवालिया या अपराधी नहीं होना चाहिए।

वह 26 जनवरी, 2001 के बाद दो से अधिक बच्चे न हों।

ग्राम पंचायत की वर्ष में 4 बैठकें होना चाहिए।

शासकीय या ग्राम पंचायत द्वारा संवैधानिक कर्मचारी की नियुक्ति की जाती है, जो पंचायत सचिव कहलाता है।

वह कार्यों का लेखा-जोखा रखता है तथा पंचायत के निर्णयों को कार्यान्वित करता है।

कार्य

पंचायत क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक विकास हेतु ग्राम पंचायतों के कार्य का उल्लेख अधिनियम के की धारा 49 में किया गया है इसके निम्न कार्य हैं-
1. पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए वार्षिक योजना तैयार करना और जनपद पंचायत की योजना में सम्मिलित करने के लिए प्रस्तुत करना।
2. ग्राम सभा के अनुमोदन से विभिन्न कार्यक्रमों के लिए
हितग्राहियों को चुनना।
3. गाँव की सफाई, स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाओं को संचालित करना।
4. सार्वजनिक कुँओं, तालाबों, पुलियों का निर्माण करना।
5. जन्म, मृत्यु का पंजीयन,बाजार एवं मेलों का प्रबंध, वृक्षारोपण तथा वनों का संरक्षण, कृषि एवं बागवानी, विकास एवं ग्राम पंचायत के भीतर सभी विकास कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना एवं उनका पर्यवेक्षण करना।
6. जन साधारण में सामान्य चेतना की अभिवृद्धि करना।
7. विभिन्न प्रकार के कर लगाना और वसूल करना।

जनपद पंचायत

जनपद पंचायतों में वार्डों की संख्या कम-से-कम 10 एवं अधिक-से-अधिक 25 होती है।

5 हजार की आबादी पर एक वार्ड होता है।

सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से एवं अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।

सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत के निर्णयों को कार्यान्वित करता है तथा कार्यों का लेखा-जोखा रखता है।

यह अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवाका सदस्य होता है।

कार्य

पंचायत अधिनियम के की धारा 50 में जनपद पंचायत निम्न कार्यों के लिए उत्तरदायी है-
1. एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम व अन्य ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों का संचालन करना।
2. कृषि,सामाजिक वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन।
3. बाढ़, सूखा, महामारी, टिड्डी दल का प्रकोप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता कार्यक्रम संचालित करना।
4. महिलाओं, बच्चों, निराश्रितों, पिछड़े वर्गों आदि का कल्याण।
5. शिक्षा, शालाओं का प्रबंधव निरीक्षण।
6. केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा सौंपे गये कार्य को संपादित करना। जनपद पंचायत ऐसे कार्य को करने के लिए बाध्य होती है।

जिला पंचायत

संगठन– जिले के समस्त जनपद पंचायतों को मिलाकर जिला पंचायत बनती है।

इसमें न्यूनतम 10 वार्ड और अधिकतम 35 वार्ड होते हैं।

प्रत्येक वार्ड में 50 हजार की जनसंख्या होती है।

जिला पंचायत के सदस्यों द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।

जिला पंचायत कार्यकारी शक्तियाँ सरकार द्वारा नियुक्त जिला पंचायत सचिव में निहित होती है।

यह अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है।

यह जिला पंचायत के निर्णयों को कार्यान्वित कर लेखा-जोखा रखता है।

कार्य

जिला पंचायत के निम्न कार्य हैं –
1. जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा संचालित किये जा रहे कार्यक्रमों का नियंत्रण एवं निर्देशन करना।
2. जिले के आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए वार्षिक योजनायें बनाना व उनका क्रियांवयन करना।
3. केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा प्रत्यायोजित किए गये कार्यों का संपादन करना।
4. परियोजनाओं के संबंधों में केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई निधियों को जनपद व ग्राम पंचायतों को आवंटित करना।

By competitiveworld27

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