इस लेख में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
अधिनियम के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार है:
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्याचारों का निवारण करने के लिए, ऐसे अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालय का तथा ऐसे अपराध से पीड़ित व्यक्तियों को राहत देने का और उनके पुनर्वास का तथा उससे सम्बन्धित या उनके आनुषंगिक विषय का उपबंध हेतु अधिनियम संसद द्वारा 1989 में अधिनियम बनाया गया।
इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर होगा।
अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का वही अर्थ होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड ( 24 ) एवं ( 25 ) में है।
यह अधिनियम 30 जनवरी, 1990 को लागू हुआ।
अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति 11 सितंबर, 1989 को मिली।
इसमें 23 धाराएं व 5 अध्याय हैं।
इसमें अपराध पीड़ितों को राहत एवं पुनर्वास भी समाहित है। 23 धाराओं में से प्रथम धारा में इसका नाम है। द्वितीय धारा में निर्वचन खण्ड है तथा अपराध को भी द्वितीय धारा के एक (अ) में परिभाषित किया गया है (2-1-अ)
अनुसूचित जाति वर्णित है – अनुच्छेद, 366 के खण्ड 24 में
अनुसूचित जनजाति वर्णित है – अनुच्छेद 366 के खण्ड 25 में
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम – 1995 केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया है।
यह नियम एक्ट की धारा: 23 में दी गई शक्ति के तहत बनाया गया है। विशेष न्यायालय के संबंध में धारा: 14 में प्रावधान है। विशेष न्यायालय प्रत्येक जिले के लिए एक होता है। सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय निर्दिष्ट किया गया है।
राज्य सरकार हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की सहमति से सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में निर्दिष्ट कर सकती है।
धारा: 3 (1) में गैर-अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्य के प्रति किए जाने वाले कृत्यों की वह सूची दी गई है, जिसे दण्डनीय अपराध माना गया है:
1. अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ खाने-पीने हेतु विवश करना।
2. उसके परिवार में कूड़ा-कचरा अथवा कोई अन्य घृणित पदार्थ अपमानित करने के आशय से रखना।
3. निर्वस्त्र करना, मानव सम्मान के विरुद्ध कृत्य।
4. उसके स्वामित्व की भूमि पर खेती करना/भूमि आंतरित करना
5. भूमि, परिसर या उसके जलाधिकार पर बेजा कब्जा करना
6. बेगार, बलात् श्रम या बंधुआ मजदूरी के लिए विवश करना
7. मतदान न करने या विधि विरुद्ध मतदान हेतु मजबूर करना
8. अपमानित करना, महिला का अनादर करना, जलाशय स्रोत को गंदा करना आदि।
9. मकान, गाव या अन्य निवास स्थान छोड़ने के लिए विवश करना।
धारा: 3 (2) में भी दण्डनीय अपराधों की सूची दी गई है, जिसमें कारावास और जुर्माने का उल्लेख है।
अधिनियम की धारा: 14 के तहत् विशेष न्यायालय गठित किए जा सकेंगे।
धारा: 21 (1) के अनुसार केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो इस एक्ट के प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन हेतु आवश्यक है।
धारा: 21 (4) के अनुसार केन्द्र सरकार प्रति वर्ष संसद के दोनों पटल पर स्वयं के द्वारा किये गये उपायों को रिपोर्ट रखेगी।
मिथ्या साक्ष्य देने या गढ़ने के कारण अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्य को यदि फांसी दे दी जाए तो ऐसे दोषी व्यक्ति को मृत्युदण्ड की सजा का प्रावधान है।
अधिनियम के तहत किसी अपराध का अन्वेषण पुलिस उप-निरीक्षक से निम्न श्रेणी के अधिकारी द्वारा नहीं किया जायेगा।
अधिनियम के अधीन किसी अपराध का अन्वेषण 30 दिनों के भीतर लिया जाना चाहिए।
अधिनियम के तहत राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य स्तरीय मॉनीटरिंग समिति में अधिकतम 25 सदस्य हो सकते है।
उच्च शक्ति प्राप्त सतर्कता और मॉनीटरी समिति की एक कैलेण्डर वर्ष में न्यूनतम 2 बैठकें होनी चाहिये। जिला स्तरीय समिति की 3 माह में एक बैठक होनी अनिवार्य है।
लज्जा भंग या लैंगिक शोषण पर राहत राशि है-₹50.000
अधिनियम के अनुसार परिवार के न कमाने वाले सदस्य की पूर्ण असमर्थता या हत्या पर पीड़ित को न्यूनतम राशि ₹ 1 लाख देने का प्रावधान है।