इस लेख में मध्य प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
मध्य प्रदेश में पंचायती राज
1 नवम्बर, 1956 के पूर्व म.प्र. की तीन इकाइयों, यथा-मध्य भारत, विन्ध्य प्रदेश व महाकौशल में अलग-अलग पंचायती राज व्यवस्था कायम थी। राज्य बनने के बाद इस व्यवस्था का एकीकरण भी जरूरी हो गया था, जिसके लिए वर्ष 1962 में प्रथम बार म.प्र. पंचायत अधिनियम लागू किया गया। इसके अंतर्गत 1965 में चुनाव भी सम्पन्न कराए गए परन्तु जनपद पंचायत का चुनाव अधिनियम लागू किया गया। इसके अंतर्गत 1965 में चुनाव भी सम्पन कराए गए परन्तु जनपद पंचायत का चुनाव पहली बार 1971 में हो सका। वर्ष 1981 में प्रदेश सरकार द्वारा म.प्र. पंचायती राज अधिनियम के रूप में स्वीकृत हुआ। इसके अंतर्गत राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था जारी रखने की बात स्वीकार की गई। संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार पुनः 29 दिसम्बर, 1993 को राज्य विधानसभा में म.प्र. पंचायती राज अधिनियम विधेयक प्रस्तुत किया गया जिसे विधानसभा द्वारा 30 दिसम्बर, 1993 को पारित कर दिया गया। तत्पश्चात् पंचायतों व नगरीय प्रशासन का चुनाव सम्पन कराने के लिए 19 जनवरी, 1994 को म.प्र. राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया। म.प्र. राज्य निर्वाचन आयोग के प्रथम आयुक्त श्री एन.वी. लोहानी थे। इस निर्वाचन आयोग के द्वारा 15 अप्रैल, 1994 को पंचायतों के चुनाव संबंधी अधिसूचना जारी कर दी गई। इस प्रकार इस राज्य ने देश में नई संवैधानिक व्यवस्था के आधार पर त्रिस्तरीय पंचायतों व नगर प्रशासनों के चुनाव कराने वाला देश में प्रथम राज्य होने का गौरव प्राप्त किया।
त्रिस्तरीय पंचायत
वर्तमान समय में राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था कायम है, जिनकी अवधारणा में एक या एक से अधिक गांवों के लिए जिला पंचायतों की बात शामिल है। 1993 के अधिनियम में संविधान में त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रमुखों के निर्वाचन की स्थिति के संदर्भ में यह व्यवस्था की गई है केवल ग्राम पंचायतों के सरपंच के मामले में निर्वाचन प्रक्रिया का जिम्मा राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करेगा जबकि जनपद एवं जिला पंचायतों के मामले में सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के माध्यम से चुने हुए सदस्यों द्वारा किया जाएगा।