वीरांगना दुर्गावती
भारतीय इतिहास का गौरव एवं शौर्य की प्रतीक महोबा की चंदेल वंश की राजकुमारी जिनका विवाह गोंड शासक दलपत इससे हुआ पुत्र वीर नारायण की संरक्षिका वन दुर्गावती ने गढ़ा मंडला का शासन दायित्व संभाला अपनी कार्यकुशलता से सिंह और गढ़ के किले दमोह की कीर्ति पताका को चाहो और विस्तारित किया| मुगल दरबारी वृतांत कार अब्दुल फजल ने ‘आईने -अकबरी’ में अंकित किया है कि गोंडवाना इतना समृद्ध शाली था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्ण मुद्राओं वह हाथियों में करती थी! अकबरनामा व तबकात -ए- अकबरी में रानी के अप्रतिम सौंदर्य और आकर्षण का उल्लेख है! रानी के शासिका होने को पड़ोसी शासकों ने कमजोर समझ गढ़ा पर अनेक हमले किए किंतु रानी ने न सिर्फ प्रतिकार किया बल्कि सिरोंज के शासक हुआ तत्पश्चात मालवा के बाज बहादुर को मैदान-ए-जंग में बुरी तरह पछाड़ा गढ़ा राज्य की समृद्धि की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई व कड़ा मानिकपुर के मुगल सूबेदार आसिफ खां ने 1564 ईस्वी में सिंगोरगढ़ के किले का घेराव किया व जबरदस्त जंग के बाद अपनी पराजय को सुनिश्चित देख रानी ने स्वयं ही लीला समाप्त कर ली!
स्वतंत्रता के लिए रानी का आत्मोत्सर्ग उनकी गौरव गाथा स्वयं कहता है तथापि उनकी स्मृति को संजोए रखने के लिए जहां रानी परलोक सिधारी उस स्थान(बरेला ग्राम जबलपुर )पर समाधि निर्मित की गई! समाधि पंप का अनावरण 24 जून 1964 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के कर कमलों द्वारा किया गया गोंडवाना की लड़ाकिनी, संग्राम की कीर्ति दुर्गावती के साहस व बलिदान की गाथाएं इतिहास में फ्रांस की ‘जोन ऑफ आर्क’ व ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’ के समकक्ष स्थान दिलाती है!
आहिल्या बाई
पानीपत के तृतीय युद्ध 1761 ईस्वीं के उपरांत मल्हार राव होलकर ने इंदौर में होलकर वंश की स्थापना की मल्हार राव की मृत्यु के उपरांत खंडेराव का पुत्र माले राव राजा बना परंतु 1 वर्ष के पश्चात ही 27 मार्च 1767 को उसकी मृत्यु हो गई उसकी मृत्यु के उपरांत उसकी मां अहिल्या बाई ने राजकाज संभाला उसने मल्हार गांव के विश्वासपात्र अधिकारी तुकोजी होलकर को अपना सेनापति बनाया उसकी मदद से अहिल्याबाई ने कुशलता और विलक्षण दक्षता से 30 वर्षों तक राज किया वह भारत की सफल महिला शासकों में गिनी जाती है 13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में अहिल्या बाई की मृत्यु हो गई!
अवन्तीबाई
अवंती बाई रामगढ़ की रानी थी जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वीरता के लिए जानी जाती है रामगढ़( मंडला )का अंतिम राजा लक्ष्मण सिंह था जिसका पुत्र मानसिक रूप से शासन करने के अयोग्य था !इस कारण अंग्रेजी शासन ने रामगढ़ की जागीर को अपने हाथ में ले लिया! लक्ष्मण सिंह की विधवा रानी अवंती बाई थी! यहां पर शासन प्रबंध की देखभाल के लिए अंग्रेजों ने एक तहसीलदार नियुक्त किया था ! रानी अवंती बाई इसी कारण से अंग्रेजों से नाराज थी इसी वजह से अवंती बाई ने वर्ष 1857 की क्रांति में भाग लिया उसकी सेना ने मंडला नगर की सीमा पर खैरी गांव में अंग्रेज सेनापति वार्डन को क्षमा मांगने के लिए मजबूर कर दिया ! अंग्रेज सेनापति वार्डन ने रीवा राज्य की सेना की मदद से रामगढ़ में घेरा डाल दिया 20 मार्च 1858 को अंग्रेजी सेना व रानी अवंती बाई के मुट्ठी भर सैनिकों के बीच युद्ध हुआ इसमें रानी की सेना पराजित हो गयी ! रानी अवंती बाई और उसकी अंग रक्षिका गिरधारी बाई ने जीवित पकड़े जाने के बजाय छाती में कटार घोंप कर शहीद होने का फैसला किया!
डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर
मध्यप्रदेश की माटी के सपूत डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर का जन्म 4 मई 1919 को नीमच में हुआ वहअध्यवसाय से जीवन पर्यन्त जुड़े रहें ! इसमें कला संस्कृति चित्रकला और पुरातात्विक खोज प्रमुख विधाएं थी डॉक्टर वाकणकर को प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉक्टर एचडी संकलिया डेक्कन कॉलेज पुणे के मार्गदर्शन में पीएचडी की उपाधि वर्ष 1973 में पुणे विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई तथा इसका शोध प्रबंध’ पेटेंट रॉक शेल्टर्स ऑफ़ इंडिया ‘ को संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा वर्ष 2005 में प्रकाशित किया गया विश्व धरोहर स्मारक समूह भीमबेटका की खोज वर्ष 1957 में डॉक्टर वाकणकर द्वारा की गई! इसके पूर्व वे वर्ष 1951 में माहेश्वर नवदाटोली पुरातात्विक उत्खनन में डॉक्टर सांकलिया के साथ थे! इसके अतिरिक्त वे मनोटी , इंद्रगढ़, कायथा, दंग वाड़ा, रूनीजा आदि पुरातात्विक उत्खनन के संचालक के रूप में मार्गदर्शन देते रहें! डॉक्टर वाकणकर का एक कहानी संग्रह और आर्य समस्या पर हिंदी व अंग्रेजी में पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं ! वर्ष 1975 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया गया वर्ष 1988 में उनका निधन हुआ राज्य शासन द्वारा संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय के अंतर्गत डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रिय सम्मान स्थापित किया गया है !