इस लेख में गतिशील विश्व : सक्रिय और व्यावहारिक दृष्टिकोण विषय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
गतिशील विश्व : सक्रिय और व्यावहारिक दृष्टिकोण
हम एक गतिशील विश्व में रहते हैं। इसलिए भारत की विदेश नीति सक्रिय, लचीली और व्यावहारिक होनी चाहिए ताकि उभरती स्थितियों का सामना करने के लिए त्वरित समायोजन किया जा सके। हालांकि, अपनी विदेश नीति के कार्यान्वयन में भारत निरपवाद रूप से बुनियादी सिद्धांतों का पालन करता है जिस पर कोई समझौता नहीं किया जाता है।
विदेश नीति: मौलिक सिद्धांत
मौलिक सिद्धांतों में शामिल हैं:
पंचशील,या पांच गुण जिन पर 29 अप्रैल, 1954 को हस्ताक्षर किए गए जो औपचारिक रूप से चीन और भारत के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार पर समझौते में प्रतिपादित किए गए थे, ने और बाद में विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन के आधार के रूप में कार्य करने के लिए विकसित हुए। ये पांच सिद्धांत हैं- (i)दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान, (ii)परस्पर गैर आक्रामकता, (iii)परस्पर गैर हस्तक्षेप, (iv)समानता और पारस्परिक लाभ, और (v)शांतिपूर्ण सह अस्तित्व।
वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) इससे संबंधित है सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की अवधारणा। दूसरे शब्दों में समूचा विश्व समुदाय एक ही बड़े वैश्विक परिवार का एक हिस्सा है और परिवार के सदस्यों को शांति और सद्भाव रखना चाहिए, मिलजुल कर काम करना चाहिए और एक साथ बढ़ने और पारस्परिक लाभ के लिए एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।
भारत विचारधाराओं के पारगमन और व्यवस्थाओं में परिवर्तन के विरूद्ध है
भारत लोकतंत्र में विश्वास करता है और समर्थन करता है; हालांकि भारत का विचारधाराओं के पारगमन में विश्वास नहीं है। भारत इसलिए चाहे वह लोकतंत्र हो, राजशाही हो या सैन्य तानाशाही सरकार के साथ खड़ा है। भारत का मानना है कि अपने नेताओं को चुनना या हटाना और शासन का रूप बरकरार रखना या बदलना देश की जनता पर निर्भर है। उपर्युक्त सिद्धांत का विस्तार करके भारत किसी अन्य देश या देशों के समूह द्वारा बल या अन्य साधनों के उपयोग से किसी विशेष देश में सत्ता परिवर्तन या क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन के विचार का समर्थन नहीं करता है। इसके साथ ही, भारत जहां पर भी क्षमता मौजूद है, वहां लोकतंत्र को बढ़ावा देने में संकोच नहीं करता; यह क्षमता निर्माण में सक्रिय रूप से सहायता प्रदान करने और लोकतंत्र की संस्थाओं को मजबूत करके किया जाता है, हालांकि, संबंधित सरकार की स्पष्ट सहमति से।
भारत एकतरफा प्रतिबंधों/सैन्य कार्रवाइयों का समर्थन नहीं करता
भारत किसी अन्य देश या देशों के समूह द्वारा किसी अन्य देश के विरूद्ध प्रतिबंध/सैन्य कार्रवाई करने के विचार का समर्थन नहीं करता है जब तक कि अंतर्राष्ट्रीय सर्वसम्मति के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र द्वारा इन प्रतिबंधों/सैन्य कार्रवाइयों को मंजूरी नहीं दी जाती । इसलिए भारत केवल ऐसे शांति-सैन्य अभियानों में योगदान देता है जो संयुक्त राष्ट्र शांति सेनाओं का हिस्सा हैं।
(भारत ने लगभग 195,000 सैनिकभेजे है, जो किसी भी देश से भेजी गई सबसे बड़ी संख्या हैं, इसने 49 से अधिक मिशनों में भाग लिया और 168 भारतीय शांतिरक्षकों ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों में सेवा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों के लिए प्रख्यात बल कमांडरभी उपलब्ध कराएं हैं और यह जारी है।
हस्तक्षेप: नहीं, मध्यवर्तन : हां
भारत का दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने में विश्वास नहीं है। तथापि, यदि किसी देश द्वारा किसी अधिनियम-निर्दोष या जानबूझकर भारत के राष्ट्रीय हितों को अतिक्रमण किया जाता है, तो भारत त्वरित और समय पर हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करता है। मध्यवर्तन हस्तक्षेप से गुणात्मक रूप से भिन्न है, विशेषकर जब संबंधित देश के अनुरोध पर मध्यवर्तन किया जाता है (उदाहरण: बांग्लादेश 1971, श्रीलंका में आईपीकेएफ (1987-90), मालदीव (1988)।
आक्रामकता पर रचनात्मक जुड़ाव
भारत, आक्रामकता पर रचनात्मक जुड़ाव की नीति की हिमाकत करता है। इसका मानना है कि हिंसक जवाबी कार्रवाई और टकराव ही मामलों को उलझा सकता है। युद्ध कोई समाधान नहीं है; हर युद्ध के बाद विरोधी दल अंतत वार्ता की मेज पर आते हैं जिसके द्वारा समय पर बहुत नुकसान पहले ही किया जा चुका होता है। यह विशेष रूप से पाकिस्तान पर लागू होता है-भारत में लक्षित राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद का मूल।
हालांकि,बातचीत की नीति को भारत की कमजोरी के रूप में गलत समझा जा सकता है। भारत द्वारा की गई प्रत्येक और वक्तव्य पर हमारे धैर्य का परीक्षण किया जाता है। सितंबर 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में आतंकी -लॉन्च पैड को निशाना बनाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक ऐसा ही एक उदाहरण है। पुलवामा आतंकवादी हमले के प्रतिशोध में फरवरी 2019 में बालाकोट में आतंकवादी शिविरों में हवाई हमला एक और उदाहरण है।
सामरिक स्वायत्तता: साझेदारी-हां, गठजोड़: नहीं
निर्णय लेने और सामरिक स्वायत्तता की स्वतंत्रता भारत की विदेश नीति की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है। इस प्रकार भारत साझेदारी में विश्वास करता है और गठबंधनों, विशेष रूप से सैन्य गठबंधनों से दूर है।
वैश्विक आयामों के मुद्दों पर वैश्विक सहमति
भारत विश्व व्यापार व्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, बौद्धिक संपदा अधिकार, वैश्विक शासन जैसे वैश्विक आयामों के मुद्दों पर वैश्विक बहस और वैश्विक सहमति का समर्थन करता है।