इस लेख मे सरोजिनी नायडू जी के जीवन परिचय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी जी का जन्म 13 फरवरी 1879 में हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में हुआ था, इनका पूरा नाम सरोजिनी चटोपाध्या था। उनके पिता का नाम डॉ अघोरनाथ चटोपाध्या एवं माता जी का नाम वरद सुंदरी देवी था । सरोजिनी जी के पिता वैज्ञानिक व डॉक्टर थे, जो हैदराबाद में रहने लगे थे, जहाँ वे हैदराबाद कॉलेज के एडमिन थे, साथ ही वे इंडियन नेशनल कांग्रेस हैदराबाद के पहले सदस्य भी बने। उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. सरोजिनी जी की माता वरद सुन्दरी देवी एक लेखिका थी, जो बंगाली में कविता लिखा करती थी. सरोजिनी जी 8 भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। उनके एक भाई वीरेन्द्रनाथ क्रन्तिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी. इन्हें 1937 में एक अंग्रेज ने मार डाला था व इनके एक और भाई हरिद्र्नाथ कवी व एक्टर थे. सरोजिनी जी बचपन से ही बहुत अच्छी विद्यार्थी रही, उन्हें उर्दू, तेलगु, इंग्लिश, बंगाली सारी भाषओं का बहुत अच्छे से ज्ञान था. 12 साल की उम्र में सरोजिनी जी ने मद्रास यूनिवर्सिटी में मैट्रिक की परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था, जिससे उनकी बहुत प्रसंशा हुई । सरोजिनी जी के पिता चाहते थे, की वे वैज्ञानिक बने या गणित में आगे की पढाई करे, लेकिन उनकी रूचि कविता लिखने में थी, वे एक बार अपनी गणित की पुस्तक में 1300 लाइन की कविता लिख डाली, जिसे उनके पिता देख अचंभित हो जाते है और वे इसकी कॉपी बनवाकर सब जगह बंटवाते है। वे उसे हैदराबाद के नबाब को भी दिखाते है, जिसे देख वे बहुत खुश होते है और सरोजिनी जी को विदेश में पढने के लिए स्कालरशिप देते है। इसके बाद वे आगे की पढाई के लिए लन्दन के किंग कॉलेज चली गई, इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गिरतों कॉलेज से पढाई की। कॉलेज में पढाई के दौरान भी सरोजिनी जी की रूचि कविता पढने व लिखने में थी, ये रूचि उन्हें उनकी माता से विरासत में मिली थी. कॉलेज की पढाई के दौरान सरोजिनी जी की मुलाकात डॉ गोविन्द राजुलू नायडू से हुई, कॉलेज के ख़त्म होने तक दोनों एक दुसरे के करीब आ चुके थे. 19 साल की उम्र में पढाई ख़त्म करने के बाद सरोजिनी जी ने अपनी पसंद से 1897 में अंतर्जातीय विवाह किया था?, उस समय अंतर्जातीय विवाह समाज के विरुद्ध था, पर उनके पिता ने समाज की चिंता ना करते हुए अपनी बेटी की शादी को मान लिया। उनके 4 बच्चे हुए, जिसमें उनकी बेटी पद्मजा सरोजिनी जी की तरह कवित्री बनी और साथ ही राजनीती में उतरी और 1961 में पश्चिम बंगाल की गवर्नर बनी। सरोजिनी जी ने शादी के बाद भी अपना काम जारी रखा, वे बहुत सुंदर सुंदर कविता लिखा करती थी, जिसे लोग गाने के रूप में गाते थे. 1905 में उनकी कविता बुलबुले हिन्द प्रकाशित हुई, जिसके बाद उन्हें सब जानने पहचानने लगे. इसके बाद से लगातार उनकी कविता प्रकाशित होने लगी। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, रवीन्द्रनाथ टैगोर, एनिबेसेन्ट जैसे महान लोग भी उनके प्रसंशक बन गये थे। वे इंग्लिश में भी अपनी कविता लिखा करती थी, लेकिन उनकी कविताओं में भारतीयता झलकती थी। 1947 में देश की आजादी के बाद सरोजनी जी को उत्तर प्रदेश का गवर्नर बनाया गया, वे पहली महिला गवर्नर थी। 2 मार्च 1949 को ऑफिस में काम करते हुए उन्हें हार्टअटैक आया और वे चल बसी. सरोजनी जी भारत देश की सभी औरतों के लिए आदर्श का प्रतीक है, वे एक सशक्त महिला थी, जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है. सरोजिनी नायडू जी को भारत की कोकिला नाम भारत के लोगों ने ही दिया था. और यह नाम उन्हें उनकी सुरीली आवाज में अपनी कविताओं का पाठ पढ़ने के लिए दिया गया था. उनकी कविताओं में एक अलग तरह का भाव होता था जोकि लोगों को काफी प्रभावित करता था। और लोग इसे बेहद पसंद करते थे. सरोजिनी नायडू जी ने स्वतंत्रता संग्राम सैनानी के रूप में महिलाओं एवं बच्चों के लिए बेहद अहम् कार्य किये थे. यही वजह है कि उनका नाम उस दौरान काफी चर्चित रहा था. सरोजिनी नायडू एक महिला होते हुए भी एक राज्य की राज्यपाल बनी थी. इसलिए उनके जन्मदिवस के दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन आज भी लोग महिलाओं को समर्पित कर मनाते हैं।
सरोजिनी नायडू जी की प्रसिद्द कविताओं में दमयन्ती टू नाला इन द आवर ऑफ एक्साइल, एक्स्टेसी, इंडियन डांसर, द इंडियन, इंडियन लव-सॉन्ग, इंडियन वेवर्स, दि फारेस्ट, राममुराथम, नाइटफॉल सिटी इन हैदराबाद, पालक्विन बेयरर्स, सती, द सोल प्रेयर ,स्ट्रीट क्राइज आदि शामिल है। जोकि उस समय बहुत अधिक लोकप्रिय रहा था।
सरोजिनी नायडू पहली महिला थी जोकि इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष और किसी राज्य की राज्यपाल बनी थी।
सन 1928 में सरोजिनी नायडू जी को हिन्द केसरी पदक से सम्मानित किया गया था।
सरोजिनी नायडू को मिले अवार्ड की सूची में द गोल्डन थ्रेसहोल्ड, द बर्ड ऑफ टाइम, द ब्रोकेन विंग्स, द स्पेक्ट्रड फ्लूट: सांग्स ऑफ इंडिया आदि नाम शामिल है।
यहाँ तक कि सरोजिनी जी ने मुहम्मद अली जिन्ना की जीवनी को हिंदू-मुस्लिम एकता के राजदूत का शीर्षक भी दिया।
सरोजिनी नायडू जी का राजनीतिक जीवन
1902 में कोलकाता में उन्होनें बहुत ही ओजस्वी भाषण दिया जिससे प्रभावित होकर गोपाल कृष्ण गोखले जी ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया एवं उनका मार्गदर्शन किया इस घटना के बाद उन्हें गांघीजी का सानिध्य प्राप्त हुआ समय बीतने के साथ ही वह कांग्रेस की राष्ट्रीय नेता बन गई। उन्होंने देश की महिलाओं को राजनीति व स्वाधीनता आंदोलन में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया। उनकी अदम्य साहस, जुझारूपन एवं आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने का ही यह फल था कि उन्हें 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्ष चुनी गई! अपने अध्यक्षीय भाषण में सरोजिनी नायडू ने भारत के सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक और बौद्धिक विकास की आवश्यकता की बात की, उन्होंने भारत की जनता को अपने देश की स्वाधीनता के लिए हिम्मत और एकता के साथ आगे बढ़ने का आव्हान किया। अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा, “स्वाधीनता संग्राम में भय एक अक्षम्य विश्वासघात है और निराशा एक अक्षम्य अपराध है”। उनकी कर्मठता एवं कर्तव्यनिष्ठा के फलस्वरूप कांग्रेस की प्रवक्ता बनने का भी गौरव प्राप्त हुआ।