इस लेख मे सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ जी के जीवन परिचय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख चार स्तम्भो में से एक थे. अर्थात वे साहित्य के महत्वपूर्ण छायावादी कवि थे. वे एक लेखक, कहानीकार, कवि, उपन्यासकार, निबंधकार एवं सम्पादक थे. परंतु वे अपनी कविताओं के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुए. उन्होंने कई रेखाचित्र भी बनाए. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई काव्य का जनक माना जाता है।
जीवन परिचय
सुर्यकांत ‘निराला’ जी का जन्म महिषादल स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी, संवत् 1953, को हुआ था। इनका अपना घर उन्नाव ज़िले के गढ़ाकोला गाँव में है। निराला जी का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए यह सुर्जकुमार कहलाए। 11 जनवरी, 1921 ई. को पं. महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई है। रामनरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदी के लिए सन् 1926 ई. के अन्त में जन्म सम्बंधी विवरण माँगा तो निराला जी ने माघ शुक्ल 11 सम्वत 1953 (1896) अपनी जन्म तिथि लिखकर भेजी। यह विवरण निराला जी ने स्वयं लिखकर दिया था। बंगाल में बसने का परिणाम यह हुआ कि बांग्ला एक तरह से इनकी मातृभाषा हो गयी। ‘निराला’ के पिता का नाम पं. रामसहाय था, जो बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर ज़िले में एक सरकारी नौकरी करते थे। निराला का बचपन बंगाल के इस क्षेत्र में बीता जिसका उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। तीन वर्ष की अवस्था में उनकी माँ की मृत्यु हो गयी और उनके पिता ने उनकी देखरेख का भार अपने ऊपर ले लिया। निराला जी की शिक्षा यहीं बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाईस्कूल पास करने के पश्चात् उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया। हाईस्कूल करने के पश्चात् वे लखनऊ और उसके बाद गढकोला (उन्नाव) आ गये। प्रारम्भ से ही रामचरितमानस उन्हें बहुत प्रिय था। वे हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा में निपुण थे और श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर से विशेष रूप से प्रभावित थे। मैट्रीकुलेशन कक्षा में पहुँचते-पहुँचते इनकी दार्शनिक रुचि का परिचय मिलने लगा।
निराला स्वच्छन्द प्रकृति के थे और स्कूल में पढ़ने से अधिक उनकी रुचि घूमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में थी। संगीत में उनकी विशेष रुचि थी। अध्ययन में उनका विशेष मन नहीं लगता था। इस कारण उनके पिता कभी-कभी उनसे कठोर व्यवहार करते थे, जबकि उनके हृदय में अपने एकमात्र पुत्र के लिये विशेष स्नेह था। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में निराला का विवाह मनोहरा देवी से हो गया। रायबरेली ज़िले में डलमऊ के पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी सुन्दर और शिक्षित थीं, उनको संगीत का अभ्यास भी था। पत्नी के ज़ोर देने पर ही उन्होंने हिन्दी सीखी। इसके बाद अतिशीघ्र ही उन्होंने बंगला के बजाय हिन्दी में कविता लिखना शुरू कर दिया। बचपन के नैराश्य और एकाकी जीवन के पश्चात् उन्होंने कुछ वर्ष अपनी पत्नी के साथ सुख से बिताये, किन्तु यह सुख ज़्यादा दिनों तक नहीं टिका और उनकी पत्नी की मृत्यु उनकी 20 वर्ष की अवस्था में ही हो गयी। बाद में उनकी पुत्री जो कि विधवा थी, की भी मृत्यु हो गयी। वे आर्थिक विषमताओं से भी घिरे रहे। ऐसे समय में उन्होंने विभिन्न प्रकाशकों के साथ प्रूफ रीडर के रूप में काम किया, उन्होंने ‘समन्वय’ का भी सम्पादन किया। पारिवारिक विपत्तियाँ 16-17 वर्ष की उम्र से ही इनके जीवन में विपत्तियाँ आरम्भ हो गयीं, पर अनेक प्रकार के दैवी, सामाजिक और साहित्यिक संघर्षों को झेलते हुए भी इन्होंने कभी अपने लक्ष्य को नीचा नहीं किया। इनकी माँ पहले ही गत हो चुकी थीं, पिता का भी असामायिक निधन हो गया। इनफ्लुएँजा के विकराल प्रकोप में घर के अन्य प्राणी भी चल बसे। पत्नी की मृत्यु से तो वे टूट से गये। पर कुटुम्ब के पालन-पोषण का भार स्वयं झेलते हुए वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। इन विपत्तियों से त्राण पाने में इनके दार्शनिक ने अच्छी सहायता पहुँचायी।
त्रिपाठी निराला का काव्य संग्रह
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने वर्ष 1923 में में अपनी प्रथम कविता संग्रह को अनामिका नाम से प्रकाशित किया। उनका प्रथम निबंध बंग भाषा में सरस्वती पत्रिका के द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 1922 ईस्वी में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने महिषादल की नौकरी को त्याग दिया और उसके बाद स्वतंत्र रूप से लेखन करने लगे। वर्ष 1923 में प्रकाशित होने वाली समन्वय का संपादन भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ही किया। इन सभी का संपादन करने के बाद भी मतवाला को वर्ष 1923 में एक टीम के साथ मिलकर के संपादित किया। इन सभी कार्यों के उपरांत लखनऊ से उन्होंने गंगा पुस्तक माला के प्रकाशन में भी काम किया। अपने जीवन का कुछ वर्ष लखनऊ में बिताया और उसके बाद इलाहाबाद चले गए इलाहाबाद जाने के बाद वे स्वतंत्र रचना करने लगे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी कविताओं में काल्पनिक घटनाओं को बहुत कम स्थान दिया, उन्होंने अपनी कविताओं में यथार्थ सत्य की प्रमुखता को दर्शाया है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपने एक काव्य संग्रह को परिमल में लिखा है। इनकी इस कविता का अर्थ था कि जिस प्रकार मानव को मुक्ति प्राप्त होती है, ठीक वैसे ही कविताओं को भी मुक्ति प्राप्त होती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख कृतियां
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावादी युग के प्रमुख कवि थे। उन्होंने अनेकों प्रकार के काव्य संग्रह को प्रकाशित किया जो कि इस प्रकार है:
काव्य। संग्रह: गीतिका (1936), अनामिका (1923), अनामिका द्वितीय, कुकुरमुत्ता (1942), परिमल (1930), तुलसीदास (1939), गीत कुंज (1954), अणिमा (1983), नए पत्ते (1946), आराधना (1953)
कहानी संग्रह: लिली (1934), शुकुल की बीवी (1941), देवी (1948), चतुरी चमार (1945), सखी (1935)
उपन्यास: प्रभावती (1936), अक्षरा (1931), अलका (1933), चोटी की पकड़ (1946), काले कारनामे (1950)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु
हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन का अंतिम समय प्रयागराज के दारागंज नामक मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में व्यतीत हुआ था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु इसी कमरे में 15 अक्टूबर वर्ष 1961 को हुई थी।