इस लेख मे माखनलाल चतुर्वेदी जी के जीवन परिचय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
माखनलाल चतुर्वेदी
भारत के ख्याति प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकारों में से एक थे। उनकी रचनाएं काफी लोकप्रिय थी। वह सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिंदी रचनाकार थे। और ‘कर्मवीर’ जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन और प्रचार किया युवाओं से प्रार्थना की कि वे गुलामी की जंजीरें तोड़कर बाहर आए। माखनलाल चतुर्वेदी एक स्वतंत्रता सेनानी और एक सच्चे देश प्रेमी भी थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका देकर जेल भी गए। माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 में बाबई, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम नंद लाल चतुर्वेदी और उनकी माता का नाम सुंदरी बाई था। इनका विवाह ग्यारसी बाई से हुआ था। माखनलाल चतुर्वेदी जी को पंडित जी के नाम से भी जाना जाता है। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने प्रारंभिक प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से ही प्राप्त की। इसके बाद में उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजराती आदि कई भाषाओं का ज्ञान घर से प्राप्त किया । माखनलाल चतुर्वेदी ने 1986 से 1910 तक विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया। लेकिन जल्द ही माखनलाल ने अपने जीवन और लेखन कौशल का उपयोग देश की स्वतन्त्रता के लिए करने का निर्णय ले लिया। उन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसी गतिविधियों में बढ़- चढ़ कर भाग लिया। जिसके चलते वे कई बार जेल भी गए और जेल में कई अत्याचारों को सहना किया । लेकिन अंग्रेज उन्हे कभी भी अपने पथ से विचलित नहीं कर पाये। 1910 में अध्यापन कार्य छोड़ने के बाद माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादक के रूप में काम करने लगे और उन्होंने “प्रभा” और “कर्मवीर” नाम के राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादन का कार्य किया। पंडित जी ने अपने लेखन शैली से देश के एक बहुत बड़े हिस्से में देश प्रेम की भावना को जागृत किया उनके भाषण भी उनके लेखों की तरह ही शक्ति पूर्ण और देश प्रेम से ओत-प्रोत होते थे। माखनलाल चतुर्वेदी 1943 में ‘अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन’ की अध्यक्षता की। उनकी कई रचनाएं देश के युवाओं में जोश भरने व उनके जागृत करने के लिए सहायक थे। माखन लाल चतुर्वेदी जी का हिंदी साहित्य में सहयोग सराहनीय था ।
‘कृष्णार्जुन युद्ध’ (1918 ई.),‘हिमकिरीटिनी’ (1941 ई.),‘साहित्य देवता’ (1942 ई.),‘हिमतरंगिनी’ (1949 ई.- साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत),‘माता’ (1952 ई.) ‘युगचरण’,‘समर्पण’ और ‘वेणु लो गूँजे धरा’ उनकी कहानियों का संग्रहअमीर इरादे, ग़रीब इरादे’ नाम से छपा है। इसके अलावा माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ कविताएं जैसे: अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिर जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने,
किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुंज कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे मधुर मधुर कुछ गां दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं।
उपलब्धियां: अध्यापन कार्य प्रारंभ 1996, शिक्षण पद का त्याग, तिलक का अनुसरण 1910 में,शक्ति पूजा लेकर राजद्रोह का आरोप 1912, प्रभा मासिक का संपादन (1913), कर्मवीर से सम्बद्ध (1920), प्रताप का सम्पादन कार्य प्रारंभ (1923), पत्रकार परिषद के अध्यक्ष(1929), म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति , भारत छोड़ो आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता (1942), सागर वि.वि. से डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित (1959)
पुरस्कार: 1943 में उस समय का हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखन लाल जी को ‘हिम किरीटिनी’ के लिए दिया गया था! 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार पंडित जी को ‘हिमतरंगिनी’ के लिए प्रदान किया गया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। 10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। 16-17 जनवरी 1965 को मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में ‘एक भारतीय आत्मा’ माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल श्री हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं॰ द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिन्दी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का ‘माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय’ उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिये उन्हें 1955 में हिन्दी के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
माखनलाल चतुर्वेदी जी 79 वर्ष की उम्र में 30 जनवरी 1968 को पंचतत्व में विलीन हो गए ।