इस लेख मे भवानी प्रसाद मिश्र जी के जीवन को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।
भवानी प्रसाद मिश्र (वर्ष 1914-1985)
मानवतावादी व गांधी दर्शन प्रभावित प्रयोगवादी कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म सन् 1914 ईस्वी में होशगाबाद जिले के टिकरिया गांव में हुआ था। परिवार के वातावरण ने उन्हें अटूट आस्थावादी और कर्म के प्रति निष्ठावान बनाया। माध्यमिक स्कूल की शिक्षा 1928 में पूरी की व 1942 से 1945 तक के जेल जीवन में उन्होंने स्वाध्याय से पर्याप्त ज्ञानार्जन किया। मिश्रजी ने विशेष रूप से कविताएं ही लिखी हैं, जो पर्याप्त परिमाण में हैं। 1930 में कवि शीर्षक कविता गांधी पंचशती रचनाएं हैं। सेवा ग्राम से प्रकाशित महिलाश्रम पत्रिका व हैदराबाद से प्रकाशित कल्पना का सम्पादन के अलावा मुम्बई आकाशवाणी में सेवा पश्चात् मिश्रजी ने सम्पूर्ण वाड्मय के संपादन व प्रकाशन का कार्य सम्पादित किया। भाव पक्षः मिश्रजी की कविताएं उदात्त भावों से आपूरित होने के कारण जन-जन के हृदय को छूती हैं। उनके काव्य में मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। सादगी उनके काव्य के प्राण हैं। कला पक्षः उनकी भाषा न एकदम साहित्यक है न सामान्य बोलचाल की। उसमें सादगी आकस्मिकता और प्रसन्नता का त्रिवेणी संगम हुआ है। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि बोलचाल की भाषा भी साहित्य की भाषा हो सकती है।
रचनाए: गोत फरोश, चकित है दुःख, अंधेरी कविताएं, बनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम तुम आते हो, गांधी पंचशती।
हिन्दी साहित्य में स्थान: मिश्रजी का काव्य संसार प्रयोगवादी नई कविता का संसार है, जिसमें व्यक्तिवादी मनोवृत्ति जीवन का संघर्ष वैषम्य, तिक्त व कटु अनुभवों और स्थितियों को मूर्त रूप देने का प्रयास सफलतापूर्वक किया गया है। उनका काव्य क्षेत्र भी जीवन की भांति विस्तृत और विशद है। उनकी सरल सादी कथन शैली को व्यंजना शक्ति अतिशय प्रभावशालिनी है। मिश्रजी की कविताओं में एक नया सौन्दर्यबोध है, जिसमें शब्द और अर्ध की बाहरी रमणीयता और सरलता के साथ भावों की आंतरिक सच्चाई सहज ही प्रकट होती है। यही कारण है कि भवानी प्रसाद मिश्र को प्रयोगवादो कवियों में प्रमुख स्थान मिला व छायावादोत्तर काव्य धारा को नया मोड़ देने वाले वे विशिष्ट कवि कहे जाते हैं। ‘बुनी हुई रस्सी’ पर उन्हें अकादमी पुरस्कार भी मिला। ‘सुख का दुःख’ कविता में काव्य पंक्तियां जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं हैं, इस बात का मुझे बड़ा दुःख नहीं है जैसी दार्शनिक अनुभूतियों से परिपूरित रचना लिखने वाले भवानी प्रसाद मिश्र का वर्ष 1985 में निधन हो गया किन्तु उनको सीधी सरल रचनाएं आज भी काव्य प्रेमियों को रिझाने में सक्षम हैं।