लोकतंत्र के स्तंभ

इस लेख में लोकतंत्र के स्तंभ विषय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।

इस लेख में लोकतंत्र के स्तंभ विषय को संक्षिप्त में विश्लेषित किया गया है।

लोकतंत्र के मुख्यतः तीन ही स्तम्भ हैं – विधायिका, कार्यपालिका,न्यायपालिका । लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया को माना जाता है ।

  • विधायिका
  • साधारण शब्दों में विधायिका या व्यवस्थापिका सरकार का वह अंग है जो कानून निर्माण का कार्य करता है। इसे आमतौर पर संसद के नाम से जाना जाता है।L संसद शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द ‘Parler’ जिसका शाब्दिक अर्थ है – बातचीत करना या बोलना तथा लेटिन शब्द ‘parliamentum’ से हुई है। संसद को अंग्रेजी में ‘Parliament’ कहा जाता है। लेटिन शब्द ‘Parliamentum’ का प्रयोग भी बातचीत के लिए ही होता रहा है। इस प्रकार संसद शब्द का प्रयोग व्यक्तियों की उस संस्था के लिए प्रयोग किया जाता है जो चर्चा या विचार-विमर्श के लिए एकत्रित हुए हों। आज सरकार के कार्यों के सन्दर्भ में संसद को व्यवस्थापिका या विधायिका का नाम दिया जाता है, जिसका सम्बन्ध कानून निर्माण से है।
  • विधायिका के कार्य व्यवस्थापिका के कार्य व भूमिका अलग-अलग देशों में अलग-अलग हैं। व्यवस्थापिका के कार्यों का निष्पादन शासन प्रणाली की प्रकृति पर निर्भर करता है। जिन देशों में निरंकुश राजतन्त्र होता है, वहां यह पूर्ण रूप से राज्य के नियन्त्रण में रहकर एक सलाहकार समिति के रूप में कार्य करती है। संसदीय सरकार में विधायिका की स्थिति बहुत मजबूत रहती है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में व्यवस्थापिका के कार्य संविधान द्वारा मर्यादित होते हैं।
  • विधायिका के प्रमुख कार्य:
  • 1. विधायिका के विधायी या कानून-निर्माण सम्बन्धी कार्य
  • 2. कार्यपालिका पर नियन्त्रण
  • 3. विधायिका के न्यायिक कार्य
  • 4. विधायिका के वित्तीय कार्य
  • 5. विधायिका के संविधान में संशोधन सम्बन्धी कार्य
  • 6. विधायिका के निर्वाचन सम्बन्धी कार्य
  • 7. विधायिका के विमर्शात्मक कार्य
  • 8. विधायिका के अन्य कार्य
  • कार्यपालिका
  • संघीय कार्यपालिका में राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति और राष्‍ट्रपति को सहायता करने एवं सलाह देने के लिये अध्‍यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री के साथ मंत्रिपरिषद होती है। केंद्र की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति को प्राप्‍त होती है, जो उसके द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर संविधान सम्मत तरीके से इस्तेमाल की जाती है। राष्‍ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्‍य तथा राज्‍यों में विधानसभा के सदस्‍य समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के तहत मतदान करते हैं। उपराष्‍ट्रपति के चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा संसद के दोनों सदनों के सदस्‍य मतदान के पात्र होते हैं।
  • राष्‍ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व में मंत्रिपरिषद होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है और वह प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्‍य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्‍तरदायी होती है। संघ के प्रशासन या कार्य और उससे संबंधित विधानों और सूचनाओं के प्रस्‍तावों से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों की सूचना राष्‍ट्रपति को देना प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य है। मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री, राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) और राज्‍य मंत्री होते हैं।
  • कार्यपालिका के प्रकार
  • कार्यपालिका के प्रकार इस प्रकार से है :-
  • वास्तविक तथा नाममात्र की कार्यपालिका 
  • राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका
  • संसदीय तथा अध्यक्षात्मक कार्यपालिका
  • एकल तथा बहुकार्यपालिका
  • पैतृक तथा चुनी हुई कार्यपालिका
  • कार्य पालिका के कार्य
  • कार्यपालिका के प्रमुख कार्य हैं :-
  • कार्यपालिका के प्रशासकीय कार्य
  • विदेश नीति का संचालन
  • कार्यपालिका के व्यवस्थापन सम्बन्धी कार्य
  • कार्यपालिका के सैनिक कार्य
  • कार्यपालिका के वित्तीय कार्य
  • कार्यपालिका के न्यायिक कार्य
  • नीति-निर्माण करना
  • कार्यपालिका के संकटकालीन कार्य
  • कार्यपालिका के राजनीतिक कार्य
  • कार्यपालिका के आर्थिक कार्य 
  • कार्यपालिका की शक्तियों का विस्तार जीवन के हर क्षेत्र तक है। राज्य के कल्याणकारी आदर्श, राष्ट्रीय सुरक्षा, अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्व, वित्त-व्यवस्था, विधि निर्माण, सैनिक कार्यों का संचालन करना, प्रशासनिक व कूटनीतिक कार्य करना आदि के रूप में कार्यपालिका के उत्तरदायित्व बढ़े हैं। आज प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में विदेशी सम्बन्धों के संचालन से लेकर आर्थिक गतिविधियों के नियन्त्रण तक कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का ही विस्तार है। आज कार्यपालिका को सही शासन का लाभ देने व आर्थिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका है। आज कार्यपालिका के संविधानिक, संकटकालीन व राजनीतिक कार्यों के रूप में राजनीतिक व्यवस्था को गतिशील बनाए रखने में अभूतपूर्व भूमिका है।

न्यायपालिका

साधारण अर्थ में कानूनों की व्याख्या करने व उनका उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को दण्डित करने की संस्थागत व्यवस्था को न्यायपालिका(Nyaypalika) कहा जाता है।

न्यायपालिका सरकार का एक विशिष्ट अंग है जिसको कानूनों का पालन कराने के लिए विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। न्यायपालिका कानून में अंतर्निहित अर्थ को समझाने का कार्य भी करती है।

न्यायपालिका का महत्व

न्यायपालिका के महत्त्व के बारे में मेरियट का कहना है कि ’सरकार के जितने भी मुख्य कार्य है, उनमें निस्संदेह न्याय कार्य अतिमहत्त्वपूर्ण है।’’ क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध नागरिकों से होता है। चाहे कानून के निर्माण की मशीनरी कितनी भी विस्तृत और वैज्ञानिक हो, चाहे कार्यपालिका का संगठन कितना भी पूर्ण हो, परन्तु फिर भी नागरिक का जीवन दुःखी हो सकता है और उसकी सम्पत्ति को खतरा उत्पन्न हो सकता है, यदि न्याय करने में देरी हो जाये या न्याय में दोष रह जाये अथवा कानून की व्याख्या पक्षपातपूर्ण या भ्रामक हो।
संविधान के अनुच्छेद 50 में कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग रखने को कहा गया है। क्यूंकि विधायिका और कार्यपालिका आपस में मिल-जुल कर कार्य करते हैं। तथा निष्पक्ष न्याय करने के लिए यह आवश्यक है।

जैसा कि हम संविधान में भारत को एक लोक कल्याणकारी राज्य बनाने की बात करते हैं। वह इस प्रकार ही संभव होता दिखाई देता है।

न्यायपालिका के मुख्य कार्य

1. न्याय करना – न्यायपालिका का मुख्य कार्य न्याय करना है। कार्यपालिका कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को पकड़कर न्यायपालिका के समक्ष प्रस्तुत करती है। न्यायपालिका उन समस्त मुकदमों को सुनती है जो उसके सामने आते हैं तथा उन पर अपना न्यायपूर्ण निर्णय देती
2. कानूनों की व्याख्या करना – न्यायपालिका विधानमण्डल में बनाये हुए कानूनों की व्याख्या के साथ-साथ उन कानूनों की व्याख्या भी करती है जो स्पष्ट नहीं होते। न्यायपालिका के द्वारा की गयी कानून की व्याख्या अन्तिम होती है और कोई भी व्यक्ति उस व्याख्या को मानने से इंकार नहीं कर सकता।
3. कानूनों का निर्माण – साधारणतया कानून-निर्माण का कार्य विधानमण्डल करता है, परन्तु कई दशाओं में न्यायपालिका भी कानूनों का निर्माण करती है। कानून की व्याख्या करते समय न्यायाधीश कानून के कई नये अर्थों को जन्म देते हैं, जिससे कानूनों का स्वरूप ही बदल जाता है और एक नये कानून का निर्माण हो जाता है। कई बार न्यायपालिका के सामने ऐसे मुकदमे भी आते हैं, जहाँ उपलब्ध कानूनों के आधार पर निर्णय नहीं किया जा सकता। ऐसे समय पर न्यायाधीश न्याय के नियमों, निष्पक्षता तथा ईमानदारी के आधार पर निर्णय करते हैं। यही निर्णय भविष्य में कानून बन जाते हैं।
4. संविधान का संरक्षण – संविधान की सर्वोच्चता को बनाये रखने का उत्तरदायित्व न्यायपालिका पर होता है। यदि व्यवस्थापिका कोई ऐसा कानून बनाये, जो संविधान की धाराओं के विरुद्ध हो तो न्यायपालिका उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकती है।
5. न्यायपालिका की इसे शक्ति को न्यायिक पुनरवलोकन (Judicial Review) का नाम दिया गया है संविधान की व्याख्या करने का अधिकार भी न्यायपालिका को प्राप्त होता है। इसी प्रकार न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है।
5. संघ का संरक्षण – जिन देशों ने संघात्मक शासन-प्रणाली को अपनाया है, वहाँ न्यायपालिका संघ के संरक्षक के रूप में भी कार्य करती है। संघात्मक शासन-प्रणाली में कई बार केन्द्र तथा राज्यों के मध्य विभिन्न प्रकार के मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं, इनका निर्णय न्यायपालिका द्वारा ही किया जाता है। न्यायपालिका का यह कार्य है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि केन्द्र राज्यों के कार्य में हस्तक्षेप न करे और न ही राज्य केन्द्र के कार्यों में।
6. नागरिक अधिकारों का संरक्षण – लोकतन्त्र को जीवित रखने के लिए नागरिकों की स्वतन्त्रता और अधिकारों की सुरक्षा अत्यन्त आवश्यक है। यदि इनकी सुरक्षा नहीं की जाती तो कार्यपालिका निरंकुश और तानाशाह बन सकती है।
नागरिकों की स्वतन्त्रता तथा अधिकारों की सुरक्षा न्यायपालिका द्वारा की जाती है। अनेक राज्यों में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था का संविधान में उल्लेख कर दिया गया है।
जिससे उन्हें संविधान और न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त हो सके। इस प्रकार न्यायपालिका का विशेष उत्तरदायित्व होता है कि वह सदैव यह दृष्टि में रखे कि सरकार का कोई अंग इन अधिकारों का अतिक्रमण न कर सके।
7. परामर्श देना – कई देशों में न्यायपालिका कानून सम्बन्धी परामर्श भी देती है। भारत में राष्ट्रपति किसी भी विषय पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श ले सकता है, परन्तु इस सलाह को मानना या न मानना राष्ट्रपति पर निर्भर है।
8. प्रशासनिक कार्य – कई देशों में न्यायालयों को प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते हैं। भारत में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा अधीनस्थ न्यायालयों पर प्रशासकीय नियंत्रण रहता है।
9. आज्ञा-पत्र जारी करना – न्यायपालिका जनता को आदेश दे सकती है कि वे अमुक कार्य नहीं कर सकते और यह किसी कार्य को करवा भी सकती है। यदि वे कार्य न किये जाएँ तो न्यायालय बिना अभियोग चलाये दण्ड दे सकता है अथवा मानहानि का अभियोग लगाकर जुर्माना आदि भी कर सकता है।
10. कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के कार्य – न्यायपालिका कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड को भी कार्य करती है, जिसका अर्थ है कि न्यायपालिका को भी सभी मुकदमों के निर्णयों तथा सरकार को दिये गये परामर्शो का रिकॉर्ड भी रखना पड़ता है। इन निर्णयों तथा परामर्शो की प्रतियाँ किसी भी समय, प्राप्त की जा सकती हैं।

समाचार (मीडिया)
चौथा स्तंभ (पत्रकारिता): पत्रकारिता जिसे मीडिया भी कहा जाता है को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में दर्जा मिला है। मीडिया जो कि लिखित, मौखिक या दृश्य किसी भी रूप में हो सकती है जनता को जानकारी देती है कि किस जगह कानूनों का उल्लंघन हो रहा है तथा तीनों स्तम्भ अपनी जिम्मेवारी तथा निष्ठा से कार्य कर रहे हैं या नही। इस जानकारी के पश्चात निर्णय लेने की पूरी शक्ति जनता के विवेक पर निर्भर करती है। मीडिया जो कि जनता तथा शासन दोनों के बीच एक माध्यम का काम करता है लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाता है। अब यह चौथा स्तंभ भी पूरी निष्ठा व जिम्मेवारी से काम करे इसकी जिम्मेवारी जनता की बनती है कि जनता अपने विवेक से मीडिया द्वारा दी गई जानकारी का सही प्रयोग करे। यहीं से लोकतंत्र मजबूत होता है। लोकतंत्र का घेरा लोगों द्वारा बनाई गई विधायिका से चलकर, कार्यपालिका, न्यायपालिका व मीडिया से होते हुए पुनः लोगों के पास ही आ जाता है। इस प्रकार लोकतंत्र इन चार स्तंभो पर टिका है इन चारों स्तंभो की मजबूती मिलकर एक मजबूत लोकतंत्र का निर्माण करती है।

मीडिया राष्ट्रीय संसाधन है। जिसे पत्रकार बंधु जन विश्वास या ट्रस्ट में प्रयोग करते हैं मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। संसद और मीडिया एक दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों ही संस्थान जनभावनाओं को अभिव्यक्ति देते हैं।

By competitiveworld27

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